सुनो..... चार दिन तो निकल गए..... बाक़ी भी शायद.... इतने ही होंगे.... और इससे भी कम तो.. वो दिन होंगे... जिनमे जीवन होगा.... ज़िंदाद...
सुनो.....
चार दिन तो निकल गए.....
चार दिन तो निकल गए.....
बाक़ी भी शायद....
इतने ही होंगे....
और इससे भी कम तो..
वो दिन होंगे...
जिनमे जीवन होगा....
ज़िंदादिली होगी..
क्योंकि अंतिम दो तो....
केवल खाँस कर ही...
गुजारने हैं....
इतने ही होंगे....
और इससे भी कम तो..
वो दिन होंगे...
जिनमे जीवन होगा....
ज़िंदादिली होगी..
क्योंकि अंतिम दो तो....
केवल खाँस कर ही...
गुजारने हैं....
बस इतनी ही मोहलत तो मिली है ना.....
जी लो ! या फिर भार सी सर पर रखो...
ख़त्म तो होगी ही.. और बहुत तेजी से भी
क्योंकि
तुम्हे भी तो..
बचपन कल ही गया लगता है ना.....
लगता है कि शादी भी ...
कुछ दिन पहले की ही बात है....
जी लो ! या फिर भार सी सर पर रखो...
ख़त्म तो होगी ही.. और बहुत तेजी से भी
क्योंकि
तुम्हे भी तो..
बचपन कल ही गया लगता है ना.....
लगता है कि शादी भी ...
कुछ दिन पहले की ही बात है....
लेकिन बीत गए न सालों ?
बिटिया भी बड़ी हो गई ...
पहले उसके ख़ुद से ..
उठ बैठने का दिन ताकती थी...
फिर खड़े होने का..
और फिर ...
उसके अपने पैरों पर..
दौड़ जाने का....
पहले उसके ख़ुद से ..
उठ बैठने का दिन ताकती थी...
फिर खड़े होने का..
और फिर ...
उसके अपने पैरों पर..
दौड़ जाने का....
याद है ...
बिन पलकों सी आँख थी उसकी...
जब उसका पहला स्वर निकला था...
उस दिन उसके रोने तक साँस थमी हुई थी....
वह रोई ...
और मै खुशी से उछल पड़ा था...
तुम भी तो अपना सारा दर्द भूलकर....
उठ बैठी थी ना !
बिन पलकों सी आँख थी उसकी...
जब उसका पहला स्वर निकला था...
उस दिन उसके रोने तक साँस थमी हुई थी....
वह रोई ...
और मै खुशी से उछल पड़ा था...
तुम भी तो अपना सारा दर्द भूलकर....
उठ बैठी थी ना !
लो ,
वह दिन भी तो तेज ही गुजरे ना !
अब तो सही से ..
वह पहला एहसास भी याद नही रहा ना..
वह दिन भी तो तेज ही गुजरे ना !
अब तो सही से ..
वह पहला एहसास भी याद नही रहा ना..
तुम्हे याद है क्या कि....
किस दिन वह पलंग पर से..
नीचे गिरी थी ?
बोलो क्या अब उसे या तुम्हे याद है ?
किस दिन वह पलंग पर से..
नीचे गिरी थी ?
बोलो क्या अब उसे या तुम्हे याद है ?
नही ना.... !
क्योंकि यह तीर सा तीव्र है...
इसका वेग परिभाषाओं से परे है....
न तो नाप ही सकोगी...
न ही ...
नापने का कोई उचित मापक ही मिलेगा....
बस इतना ही समझ लो...
चार गए ..... बस चार ही बाक़ी हैं
चाहे जी लो..... या फिर करती रहो
अब आने वाले चौथे दिन का इंतज़ार....
क्योंकि यह तीर सा तीव्र है...
इसका वेग परिभाषाओं से परे है....
न तो नाप ही सकोगी...
न ही ...
नापने का कोई उचित मापक ही मिलेगा....
बस इतना ही समझ लो...
चार गए ..... बस चार ही बाक़ी हैं
चाहे जी लो..... या फिर करती रहो
अब आने वाले चौथे दिन का इंतज़ार....
-सुधांशु श्रीवास्तव,
