श्री राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर । ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरू तुलसी तोर।1। सीता लखन समेत प्रभु सेाहत तुलसीदास। हरषत सुर बरष...
श्री राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरू तुलसी तोर।1।
सीता लखन समेत प्रभु सेाहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।2।
पंचवटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत।3।
श्री चित्रकूट सब िदन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत।4।
पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ।5।
राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।6।
हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम।
मनहुँ पुरट संपुट लसत लसत तुलसी ललित ललाम।7 ।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरू तुलसी तोर।1।
सीता लखन समेत प्रभु सेाहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।2।
पंचवटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत।3।
श्री चित्रकूट सब िदन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत।4।
पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ।5।
राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।6।
हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम।
मनहुँ पुरट संपुट लसत लसत तुलसी ललित ललाम।7 ।
सगुल ध्यान रूचि सरस नहिं निर्गुन मन में दूरि।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि।8।
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ।9।
नाम राम केा अंक है सब साधन हैं सून।
अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून।10।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु।11।
राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि।
तुलसी इहाँ जो आलसी गयेा आजु की कालि।12।
नाम गरीबनिवाज को राज देेत जन जानि।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि।13।
कासीं बिधि बसि तनु तजें हठि तनु तजें प्रयाग।
तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग।14।
मीठो अरू कठवति भरो रौंताई अरू छेम।
स्वारथ परमारथ सुलभ राम नाम के प्रेम।15।
राम नाम सुमिरत सुजस भाजन भए कुजाति।
कुतरूक सुरपुर राजमग लहत भुवन बिख्याति।16।
स्वारथ सुख सपनेहँु अगम परमारथ न प्रबेस।
राम नाम सुमिरत मिटहिं तुलसी कठिन कलेस।17।
मोर मोर सब कहँ कहिस तू को तू को कहु निज नाम।
कै चुप साधहि सुनि समुझि कै तुलसी जपु राम।18।
हम लखि लखहि हमार लखि हम हमार के बीच।
तुलसी अलखहि का लखहि राम नाम जप नीच।19।
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास।20।
तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि।
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।
प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम।
तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।
दंपति रस दसन परिजन बदन सुगेह।
तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह।24।
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास।25।
राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।26।
राम नाम किल कामतरू राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग गुरूपद पंकज रेनु।27।
राम नाम कलि कामतरू सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि सब पग पग परमानंद।28।
जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास।
रामनाम सब धरममय जानत तुलसीदास।29।
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।
प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम।
तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।
दंपति रस दसन परिजन बदन सुगेह।
तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह।24।
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास।25।
राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।26।
राम नाम किल कामतरू राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग गुरूपद पंकज रेनु।27।
राम नाम कलि कामतरू सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि सब पग पग परमानंद।28।
जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास।
रामनाम सब धरममय जानत तुलसीदास।29।
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
राम चरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि।31।
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रधुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ।32।
राम नाम पर नाम तें प्रीति प्रतिति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस।33।
लंक बिभीसन राज कपि पति मारूति खग मीच।
लही राम सों नाम रति चाहत तुलसी नीच।34।
हरन अमंगल अघ अखिल करन सकल कल्यान ।
रामनाम नित कहत हर गावत बेद पुरान।35।
तुलसी प्रीति प्रतीति सेां राम नाम जप जाग।
किएँ होइ बिधि दाहिनो देइ अभागेहि भाग।36।
जल थल नभ गति अमित अति अग जग जीव अनेक।
तुलसी तो से दीन कहँ राम नाम गति एक।37।
राम भरोसो राम बल राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल माँगत तुलसीदास।38।
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहुँ दिसि तुलसीदास।39।
रसना सँापिनि बदन बिल जे न जपहिं हरिनाम।
तुलसी प्रेम न राम सों ताहि बिधाता बाम।40।
राम चरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि।31।
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रधुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ।32।
राम नाम पर नाम तें प्रीति प्रतिति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस।33।
लंक बिभीसन राज कपि पति मारूति खग मीच।
लही राम सों नाम रति चाहत तुलसी नीच।34।
हरन अमंगल अघ अखिल करन सकल कल्यान ।
रामनाम नित कहत हर गावत बेद पुरान।35।
तुलसी प्रीति प्रतीति सेां राम नाम जप जाग।
किएँ होइ बिधि दाहिनो देइ अभागेहि भाग।36।
जल थल नभ गति अमित अति अग जग जीव अनेक।
तुलसी तो से दीन कहँ राम नाम गति एक।37।
राम भरोसो राम बल राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल माँगत तुलसीदास।38।
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहुँ दिसि तुलसीदास।39।
रसना सँापिनि बदन बिल जे न जपहिं हरिनाम।
तुलसी प्रेम न राम सों ताहि बिधाता बाम।40।
श्री हिय फाटहूँ फूटहुँ नयन जरउ सो तन केहि काम।
द्रवहिं स्त्रवहिं पुलकइ नहीं तुलसी सुमिरत राम।41।
रामहिं सुमिरत रन भिरत देत परत गुरू पायँ।
तुलसी जिन्हहि न पुलक तनु ते जग जीवत जायँ।42।
हृदय से कुलिस समान जो न द्रवइ हरिगुन सुनत।
कर न राम गुन गान जीह सेा दादुर जीह सम।43।
स्त्रवै न सलिल सनेहु तुलसी सुनि रघुबीर जस।
ते नयना जनि देहु राम करहु बरू आँधरो।44।
रहैं न जल भरि पूरि राम सुजस सुनि रावरो ।
तिन आँखिन में धूरि भरि भरि मूठी मेलिये।45।
बारक सुमिरत तोहि होहि तिन्हहि सम्मुख सुखद ।
क्यों न सँभारहि मोहि दय सिंधु दसरत्थ के।46।
साहिब हेात सरोष सेवक को अपराध सुनि।
अपने देखे देाष सपनेहुँ राम न उर धरे।47।
तुलसी रामहि तें सेवक की रूचि मीठि।
सीतापति से साहिबहि कैसे दीजै पीठि।48।
तुलसी जाके होयगी अंतर बाहिर दीठि।
सेा कि कृपालुजि देइगो केवटपालहि पीठि।49।
प्रभु तरू तर कपि डार पर ते किए आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सील निधान।50।
द्रवहिं स्त्रवहिं पुलकइ नहीं तुलसी सुमिरत राम।41।
रामहिं सुमिरत रन भिरत देत परत गुरू पायँ।
तुलसी जिन्हहि न पुलक तनु ते जग जीवत जायँ।42।
हृदय से कुलिस समान जो न द्रवइ हरिगुन सुनत।
कर न राम गुन गान जीह सेा दादुर जीह सम।43।
स्त्रवै न सलिल सनेहु तुलसी सुनि रघुबीर जस।
ते नयना जनि देहु राम करहु बरू आँधरो।44।
रहैं न जल भरि पूरि राम सुजस सुनि रावरो ।
तिन आँखिन में धूरि भरि भरि मूठी मेलिये।45।
बारक सुमिरत तोहि होहि तिन्हहि सम्मुख सुखद ।
क्यों न सँभारहि मोहि दय सिंधु दसरत्थ के।46।
साहिब हेात सरोष सेवक को अपराध सुनि।
अपने देखे देाष सपनेहुँ राम न उर धरे।47।
तुलसी रामहि तें सेवक की रूचि मीठि।
सीतापति से साहिबहि कैसे दीजै पीठि।48।
तुलसी जाके होयगी अंतर बाहिर दीठि।
सेा कि कृपालुजि देइगो केवटपालहि पीठि।49।
प्रभु तरू तर कपि डार पर ते किए आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सील निधान।50।
रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि।
भलो सिखावन देत है निस दिन तुलसी तोहि।51।
हरे चरहिं तापहिं बरे फरें पसाहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ ीमत सब परमारथ रघुनाथ।52।
स्वारथ सीता राम सों परमारथ सिय राम।
तुलसी तेरों दूसरे द्वार कहा कहु काम। 53।
स्वारथ परमारथ सकल सुलभ एक ही ओर।
द्वार दूसरे दीनता उचित न तुलसी तोर।54।
तुलसी स्वारथ राम हित परमारथ रघुबीर।
सेवक जाके लखन से पवनपूत रनधीर।55।
ज्यों जग बैरी मीन को आपु सहित बिनु बारि ।
त्यों तुलसी रघुबीर बिनु गति आपनी बिचारि।56।
राम प्रेम बिनु दूबरो राम प्रेमहीं पीन।
रघुबर कबहुँक करहुगे तुलसिहि ज्यों जल मीन।57।
राम सनेही राम गति राम चरन रति जाहि।
तुलसी फल जग जनम को दियो बिधाता ताहि।58।
आपु आपने तें अधिक जेहि प्रिय सीताराम।
तेहि के पग की पानहीं तुलसी तनु को चाम।59।
स्वारथ परमारथ रहित सीता राम सनेहँ ।
तुलसी सेा फल चारि को फल हमार मत एहँ।60।
श्री जे जन रूखे बिषय रस चिकने राम सनेहँ।
तुलसी ते प्रिय राम को कानन बसहिं कि गेहँ।61।
जथा लाभ संतोष सुख रघुबर चरन सनेह।
तुलसी जो मन खूँद सम कानन बसहुँ कि गेह।62।
तुलसी जौं पै राम सों नाहिन सहज सनेह ।
मूँड़ मुड़ायो बादिहीं भाँड़ भयो तजि गेह।63।
तुलसी श्रीरघुबीर तजि करै भरोसो और ।
सुख संपति की का चली नरकहुँ नाहीं ठौर।64।
तुलसी परिहरि हरि हरहि पाँवर पूजहिं भूत।
अंत फजीहत होहिंगे गनिका के से पूत।65।
सेये सीता राम नहिं भजे न संकर गौरि।
जनम गँवायो बादिहीं परत पराई पौरि।66।
तुलसी हरि अपमान तें होइ अकाज समाज।
राज करत रज मिलि गए सदल सकुल कुरूराज।67।
तुलसी रामहिं परिहरें निपट हानि सुन ओझ।
सुरसरि गत सेाई सलिल सुरा सरिस गंगोझ।68।
राम दुरि माया बढ़ति घटति जानि मन माँह।
भूरि होति रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छाँह।69।
साहिब दीनानाथ सेां जब घटिहैं अनुराग।
तुलसी तबहीं भालतें भभरि भागिहैं भाग।70।
तुलसी ते प्रिय राम को कानन बसहिं कि गेहँ।61।
जथा लाभ संतोष सुख रघुबर चरन सनेह।
तुलसी जो मन खूँद सम कानन बसहुँ कि गेह।62।
तुलसी जौं पै राम सों नाहिन सहज सनेह ।
मूँड़ मुड़ायो बादिहीं भाँड़ भयो तजि गेह।63।
तुलसी श्रीरघुबीर तजि करै भरोसो और ।
सुख संपति की का चली नरकहुँ नाहीं ठौर।64।
तुलसी परिहरि हरि हरहि पाँवर पूजहिं भूत।
अंत फजीहत होहिंगे गनिका के से पूत।65।
सेये सीता राम नहिं भजे न संकर गौरि।
जनम गँवायो बादिहीं परत पराई पौरि।66।
तुलसी हरि अपमान तें होइ अकाज समाज।
राज करत रज मिलि गए सदल सकुल कुरूराज।67।
तुलसी रामहिं परिहरें निपट हानि सुन ओझ।
सुरसरि गत सेाई सलिल सुरा सरिस गंगोझ।68।
राम दुरि माया बढ़ति घटति जानि मन माँह।
भूरि होति रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छाँह।69।
साहिब दीनानाथ सेां जब घटिहैं अनुराग।
तुलसी तबहीं भालतें भभरि भागिहैं भाग।70।
करिहौं कोसलनाथ तजि जबहिं दूसरी आस।
जहाँ तहाँ दुख पाइहौं तबहीं तुलसीदास।।71।।
बिंधि न ईंधन पाइऐ सागर जुरै न नीर।
परै उपास कुबेर घर जो बिपच्छ रघुबीर।72।
बरसा को गोबर भयों केा चहै को करै प्रीति।
तुलसी तू अनुभवहि अब राम बिमुख की रीति।73।
सबहि समरथहि सुखद प्रिय अच्छम प्रिय हितकारिं।
कबहुँ न काहुहि राम प्रिय तुलसी कहा बिचारि।।74।
तुलसी उद्यम करम जुग जब जेहि राम सुडीठि।
होइ सुफल सोइ ताहि सब सनमुख प्रभु तन पीठि।75।
राम कामतरू परिहरत सेवत कलि तरू ठूँठ।
स्वारथ परमारथ चहत सकल मनोरथ झूँठ।76।
निज दूषन गुन राम के समुझें तुलसीदास।
होइ भलो कलिकाल हूँ उभय लोक अनयास।77।
कै तोहि लागहिं राम प्रिय कै तू प्रभु प्रिय होहि।
दुइ में रूचै जो सुगम सो कीबे तुलसी तोहि।78।
तुलसी दुइ महँ एक ही खेल छाँडि छल खेलु।
कै करू ममता राम सों कै ममता परहेलु।79।
निगम अगम साहेब सुगम राम साँचिली चाह।
अंबु असन अवलोकिअत सुलभ सबै जग माँह।80।
जहाँ तहाँ दुख पाइहौं तबहीं तुलसीदास।।71।।
बिंधि न ईंधन पाइऐ सागर जुरै न नीर।
परै उपास कुबेर घर जो बिपच्छ रघुबीर।72।
बरसा को गोबर भयों केा चहै को करै प्रीति।
तुलसी तू अनुभवहि अब राम बिमुख की रीति।73।
सबहि समरथहि सुखद प्रिय अच्छम प्रिय हितकारिं।
कबहुँ न काहुहि राम प्रिय तुलसी कहा बिचारि।।74।
तुलसी उद्यम करम जुग जब जेहि राम सुडीठि।
होइ सुफल सोइ ताहि सब सनमुख प्रभु तन पीठि।75।
राम कामतरू परिहरत सेवत कलि तरू ठूँठ।
स्वारथ परमारथ चहत सकल मनोरथ झूँठ।76।
निज दूषन गुन राम के समुझें तुलसीदास।
होइ भलो कलिकाल हूँ उभय लोक अनयास।77।
कै तोहि लागहिं राम प्रिय कै तू प्रभु प्रिय होहि।
दुइ में रूचै जो सुगम सो कीबे तुलसी तोहि।78।
तुलसी दुइ महँ एक ही खेल छाँडि छल खेलु।
कै करू ममता राम सों कै ममता परहेलु।79।
निगम अगम साहेब सुगम राम साँचिली चाह।
अंबु असन अवलोकिअत सुलभ सबै जग माँह।80।
सनमुख आवत पथिक ज्यों दिएँ दाहिनो बाम।
तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम।81।
राम प्रेम पथ पेखिऐ दिएँ बिषय तन पीठि।
तुलसी केंचुरि परिहरें होत साँपेहू दीठि।82।
तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि।
तौ लौं सुधा सहस्त्र सम राम भगति सुठि सीठि।83।
जैसेा मेरो रावरो केवल कोसलपाल ।
तौ तुलसी को है भलो तिहूँ लोक तिहुँ काल।84।
है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहैं लोग।
भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग।85।
प्रीति राम सों नीति पथ चलिय राग रिस जीति।
तुलसी संतन के मते इहै भगति की रीति।86।
सत्य बचन मानस बिमल कपट रहित करतूति।
तुलसी रघुबर सेवकहि सकै न कलिजुग धूति।87।
तुलसी सुखी जो राम सों दुखी सो निज करतूति।
करम बचन मन ठीक जेेहि तेहि न सकै कलि धूति।88।
नातो नाते राम के राम सनेहुँ सनेहु।
तुलसी माँगत जोरि कर जनम जनम सिव देहु।89।
सब साधन को एक फल जेहिं जान्यो सो जान।
ज्यों त्यों मन मंदिर बसहिं राम धरें धनु बान।90।
तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम।81।
राम प्रेम पथ पेखिऐ दिएँ बिषय तन पीठि।
तुलसी केंचुरि परिहरें होत साँपेहू दीठि।82।
तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि।
तौ लौं सुधा सहस्त्र सम राम भगति सुठि सीठि।83।
जैसेा मेरो रावरो केवल कोसलपाल ।
तौ तुलसी को है भलो तिहूँ लोक तिहुँ काल।84।
है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहैं लोग।
भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग।85।
प्रीति राम सों नीति पथ चलिय राग रिस जीति।
तुलसी संतन के मते इहै भगति की रीति।86।
सत्य बचन मानस बिमल कपट रहित करतूति।
तुलसी रघुबर सेवकहि सकै न कलिजुग धूति।87।
तुलसी सुखी जो राम सों दुखी सो निज करतूति।
करम बचन मन ठीक जेेहि तेहि न सकै कलि धूति।88।
नातो नाते राम के राम सनेहुँ सनेहु।
तुलसी माँगत जोरि कर जनम जनम सिव देहु।89।
सब साधन को एक फल जेहिं जान्यो सो जान।
ज्यों त्यों मन मंदिर बसहिं राम धरें धनु बान।90।
जौं जगदीस तौ अति भलो जौं महीस तौ भाग।
तुलसी चाहत जनम भरि राम चरन अनुराग।91।
परौं नरक फल चारि सिसु मीच डाकिनी खाउ।
तुलसी राम सनेह को जो फल सो जरि जाउ।92।
हित सों हित, रति राम सों, रिपु सों बैर बिहाउ।
उदासीन सब सों सरल तुलसी सहज सुभाउ।93।
तुलसी ममता राम सों समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार।94।
रामहि डरू करू राम सों ममता प्रीति प्रतिति।
तुलसी रिरूपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति।95।
तुलसी राम कृपालु सों कहि सुनाउ गुन दोष।
होय दूबरी दीनता परम पीन संतोष।96।
सुमिरन सेवा राम सों साहब सों पहिचानि।
ऐसेहु लाभ न ललक जो तुलसी नित हित हानि।97।
जानेें जानन जोइऐ बिनु जाने को जान।
तुलसी यह सुति समुझि हियँ आनु धरें धनु बान।98।
करमठ कठमलिया कहैं ग्यानी ग्यान बिहीन।
तुलसी त्रिपथ बिहाइ गो राम दुआरे दीन।99।
बाधक सब सब के भए साधक भये न कोइ।
तुलसी राम कृपालु तें भलो होइ सेा होइ।100।
तुलसी चाहत जनम भरि राम चरन अनुराग।91।
परौं नरक फल चारि सिसु मीच डाकिनी खाउ।
तुलसी राम सनेह को जो फल सो जरि जाउ।92।
हित सों हित, रति राम सों, रिपु सों बैर बिहाउ।
उदासीन सब सों सरल तुलसी सहज सुभाउ।93।
तुलसी ममता राम सों समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार।94।
रामहि डरू करू राम सों ममता प्रीति प्रतिति।
तुलसी रिरूपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति।95।
तुलसी राम कृपालु सों कहि सुनाउ गुन दोष।
होय दूबरी दीनता परम पीन संतोष।96।
सुमिरन सेवा राम सों साहब सों पहिचानि।
ऐसेहु लाभ न ललक जो तुलसी नित हित हानि।97।
जानेें जानन जोइऐ बिनु जाने को जान।
तुलसी यह सुति समुझि हियँ आनु धरें धनु बान।98।
करमठ कठमलिया कहैं ग्यानी ग्यान बिहीन।
तुलसी त्रिपथ बिहाइ गो राम दुआरे दीन।99।
बाधक सब सब के भए साधक भये न कोइ।
तुलसी राम कृपालु तें भलो होइ सेा होइ।100।
श्री संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।101।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।101।